Love letter लव लेटर
लव लेटर उस फूल बेचने वाला लड़का को क्या पता था उसने भूल से कह दिया- एक गुलाब ले लीजिए.. भगवान आप की जोड़ी सलामत रखेगा....
शायद वो लडकी सच में ही मेरे इतने करीब थी किसी को भी आश्चर्य हो जाए कि हम साथ में हैं!
अचानक मैं सोच भी नहीं सकता ऐसी स्थिति बन गई मैं मुस्कुरा दिया
वह भी शायद झोंपकर मुस्कुराई होगी लेकिन मैं देखा नहीं, पर उसकी परछाई देखकर कल्पना करी!
दिन के 4:00 बजे होंगे और धरती पर हम दोनों की लंबी सी👉 लव लेटर परछाई गिर रही होगी!
परछाई में सच में ही जुड़े कंधों से इतनी नजदीक मालूम होता था जैसे एक दूसरे का हाथ थामे खड़े हो!
मुझे लगा मैं अपनी परछाई से दोयम हो गया हूँ, उससे हार गया हूं, मेरा हड्डी मांस का होना अकारथ था मुझे एक बे आवाज अंधेरे के वृत में धरती पर गिर पड़ा था यह युगल आकृति में यह से एक चित्रकार बनाते हैं चित्र,,
मैंने फूल ले लिया! मुझे उसकी कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी रख लिया!
प्यार का लव लेटर beautiful लम्हें
पुस्तक में फूल बेचने वाले को कहने का मन हुआ कि दोस्त, तुम्हें तो तुमारे फूल का दाम मिल गए लेकिन तुम्हारी दुआ बेकार जाएगी!
ना कोई जोड़ी है ना किसी को सलामत रहना है यह तो बस यूं ही अफरातफरी में जुड़ा हुआ साथ है यहां इतनी भीड है कि भ्रम होता है कि अलग-अलग नहीँ है!
वो दिल्ली थी! मैं वैशाली मेट्रो स्टेशन पर था स्कूल के किताब में रखकर आगे बढ़ चला... वह भी साथ ही चली,
हमने साथ में ही कतार में लगकर टोकन लिया साथ ही प्लेटफार्म पर पहुंचे, साथ ही मेट्रो का इंतजार किया.. साथ ही गाड़ी में घुसे, साथ साथ बैठे!
मैंने मन ही मन सोचा की उम्र भर तो नहीं कम से कम चंद मिनटों तक तो साथ रहेगा लव लेटर फॉर गर्लफ्रैंड ₹20 का गुलाब था!
अपने हिस्से की दुआ पूरी करके ही मुरझाना चाहता था उस फूल की खूबसूरत मुझमें रच गई!
यह तो दुनिया में कुछ चीजें पूरे जीवन की पूंजी लगाकर ना मिले इतनी अनमोल होती है!
मेट्रो चलती रही! एक-एक स्टेशन आते रहे, मुसाफिर उतरते चढ़ते रहे!
मै स्टेशन पर सोचता शायद यही तक साथ हो, किंतु दरवाजा खुल कर बंद हो जाता है वह अपनी जगह बनी रही!!
प्रेमिका के लिए लव लेटर
मैं खुद को उसके साथ चंद मिनटों की मुबारकबात देता फिर कोसंबी आया और गया आनंद विहार आकर निकल गया!
मुझे लगा की उतर जाएगी लेकिन पर्स टटोलकर ही स्थिर हो गई! प्रगति मैदान पर ही नहीं उतरी!
मैंने कनखियों से देखा उसके कान में मिट्ठू के पिंजरे के समान उसके कान के झुमका थे जो पूरे समय झूल रहा था पीपल के पत्तों की तरह!
बालों की 1 लटे चेहरों पर आ गई गाल पर वर्षों का निशान था! बड़ी तीखी नाक, उसका फोन बजा !
मुस्कुरा कर बात करती रही मैंने देखा उसके एक घुंघट टूट चुका था! ऊपर की दंत पंक्ति में एक दांत तिरछा था! प्यार भरी लव लेटर
वह कौन थी...? क्या पता कहां...? से आई है कहीं को उसे जाना था ना जाना था लेकिन एक लापरवाह भूल से कही गई वह बात थी- भगवान आप की जोड़ी सलामत रखेगा, जो बात भले ही झूठ हो लेकिन सुंदर थी!!
उसकी कल्पना में आनंद था मेरा उसका एक झूठे आरोप का नाता बन गया था जैसे कहने भर से ही कुछ जुड़ गया!
जैसे कुछ भी कहना है संसार में हवा का एक बगुला भर ना हो, कहने से उसका ठोस आकार बन जाता हो नियति बंध जाती हो,
पहला लव लेटर की कुछ बातें
गुलाब की कली बेचने के मकसद से बोला गया वह व्यापारी झूठ ही तो था!!
किसी को अनजाने में भी ऐसी बातें नहीं करना चाहिए जो हमें ऐसी माया में बिसरा दें!
मंडी हाउस स्टेशन में आया अब तो मुझे ही उतरना था मैं ग्रीन पार्क जा रहा था!
मंडी हाउस पर मेट्रो लाइन बदलना होता था संयोग कि वह भी यही उतरी!
किंतु और आगे नहीं जाना था उसकी मंजिल मंडी हाउस ही था इतना भर ही साथ था!
कौन जाने एन एनएसडीए की स्टूडेंट्स हो.. क्या पता त्रिवेणी कैफे पर किसी के साथ चाय पीने का वादा किया हो!
या सांझढले घर जा रही हो क्या पता मंडी हाउस के बाहर ऑटो रिक्शा वालों के इशारों से खो जाय, लव लेटर दिल्ली की गलियों में कहीं घूम जाना हो जैसे भोर का सपना जो खोजने से ना मिलना हो!
मैं उसे दूर तक देखता रहा जब तक की आँख से ओझल ना हो गई हो, उसकी पीठ सुदूर जाकर धुंधला गई!
मैंने उससे मन ही मन कहा शायद यह आखिरी मुलाकात है! जिंदगी में आप कभी मिलना ना होगा तुम्हें अलविदा..! दुनिया बहुत बड़ी है!!
इसलिए नहीं कि यहां बहुत सारे नदी पहाड़ है बल्कि इसलिए उसमें दो के बीच अंतरिक्ष जितनी असंभव दूरियां होती है!!
मैंने किताब खोली और उनको देख मैंने उससे कहा
अब से यही तुम्हारा घर.… है पूरा जीवन अब तुम्हें इस किताब के भीतर ही रहना है..... इस हसीन