Love story
सभी राजपूत रियासतों को एक झंडे के नीचे लाने वाले महाराणा सांगा के निधन के बाद महाराणा रतन सिंह राज गद्दी पर बैठे!
राणा रतन सिंह के निधन के बाद उनके भाई विक्रमादित्य राज गद्दी पर विक्रमादित्य ने अपने सेना में सात हजार पहलवान भर्ती किए!
इन्हें जानवरों की लड़ाई , कुश्ती, आखेट और आमोद प्रमोद ही प्रिय था!
इन्हीं कारणों से वाह इनके व्यवहार से मेवाड़ के सामंत खुश नहीं थे!
और वह Love story के मध्य वे उन्हें छोड़कर बादशाहा राजा बहादुर शाह के पास अन्यत्र चले गए!
बहादुर शाह का भाई सिकंदर सिकंदर बागी होकर राणा सांगा के समय चित्तौड़ के महाराणा सांगा के शरण में रहा था!
उसने बहादुर शाह के खिलाफ संघर्ष हेतु चित्तौड़ के सेठ कर्मसहा से एक लाख रुपये की सहायता भी ली थी!
जब बादशाहा रायसन ने दुर्ग को घेरा तो चित्तौड़ की सेना ने उसकी सहायता की!
इसी कारण गुस्सा होकर बहादुर शाह ने मोहम्मद अखरी, खुदापंखा को सेना सहित भेज कर 1532 वी सदी में चित्तौड़ पर आक्रमण किया!
वह तीन बाद ही खुद सेना सहित चित्तौड़ आ दमका!
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मेवाड़ का तत्कालीन शासक विक्रमादित्य योग्य शासक था मेवाड़ के लगभग सभी सामंत शासक उससे रुठे थे!
अतः जब मेवाड़ की राजमाता कर्मवती जिसे कर्णावती रानी कर्णावती के नाम से जाना जाता है!
उन्हें समाचार मिलते ही बादशाह के हाथों दिल्ली के बादशाह हुमायूं को भाई मानते हुए उन्हें राखी भेजी और उन्हें सहायता का अनुरोध किया!
हुमायूं ने राजमाता को बहन माना और उपहार आदि स्वरूप भेंट भेजें और उस सहायता के लिए रवाना होकर ग्वालियर तक पहुंचे!
तभी वहां बादशाहा का संदेश मिला कि वह काफिरों old love 'के खिलाफ जिहाद कर रहा है!
तब आगे नहीं बढ़ा और वह एक महा ग्वालियर मेंं रहकर आगरा चला गया!
विक्रमादित्य ने बहादुरशाह से संधि करने का प्रयास किया लेकिन विफल रहा!
बहादुर शाह ने सुदृढ़ मोर्चाबंदी कर चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया, उसके पास असंख्य सेना वाली सैनिकों वाली सेना भी थी!
अतः राजमाता कर्मावती ने सुल्तान के पास दूध भेज कर संदीप की वार्ता की आरंभ और कुछ समय बाद कुछ शर्तों केेेेे साथ संधि भी हो गई!
परंतु Love story थोड़े दिन बाद बहादुर शाह ने संधि को ठुकराते हुए और चित्तौड़ पर कुछ किया!
राजमाता कर्मावती को समाचार मिलते ही सभी सामंतों को चित्तौड़ की रक्षार्थ का पत्र भेजा!
यह आपकी मातृभूमि ,आपको आपको सौंपती हूं चाहे तो इसे रखो अन्यथा दुश्मन को दे दो!
इस पत्र से मेवाड़ में सनसनी फैल गई सभी सामंत मातृभूमि की चित्तौड़ की रक्षा के लिए जमा हो गए!
रावत बाग सिंह, रावत सत्ता, रावत बर्नर ,रावत दूदा चूंडावत , हाड़ा अर्जुन भेरू दास, सोलंकी झाला, सज्जा झाला सिंह ,
और झाला सोनगरा माला आदि प्रमुख सामंत मंत्रणा कर महाराणा विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह जो उस वक्त शिशु थे उन्हें मंत्रणा भेज दिया गया भेज दिया देखरेख के लिए बंदी भेज दिया गया!
सभी राजपूतों ने रणनीति के साथ अघोरी उत्तर किया!
लव स्टोरी कहानी के कुछ खतरनाक पल
बहादुर शाह जनवरी 1535 वी मैं चित्तौड़ पहुंचा और किला को घेर लिया!
उस वक्त अपने बाकी सरदार मोहम्मद जमा बादशाह के शरण में आने से नाराज हुमायूं ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया!
बहादुर शाह ने चित्तौड़ से घेरा उठाकर गुजरात बचाने की प्रस्थान सोची!
तभी उसके एक सरदार ने उसे बताया कि जब तक हम चित्तौड़ में काफिरों के खिलाफ जेहाद कर रहे हैं हुमायूं आगे नहीं बढ़ेगा !
और हुआ भी ऐसा ही हुमायूं सारंगपुर रुक गया और चित्तौड़ के युद्ध के परिणामों की प्रतीक्षा करने लगा!
आख़िर 1535 ई. में बहादुर सेना के तोपखाने के भयंकर युद्ध से चित्तौड़ के किला ढहने लगी!
भयंकर युद्ध हुआ चित्तौड़ के सभी सामंत योद्धाओं के साथ महाराणा सांगा की राठौड़ जवाहरबाई महारानी ने पुरुष वेश में युद्ध संचालन किया!
आखिर हर सामने देख राजपूतों ने चित परिचित जोहार Love story kahani और शाखा करने का निर्णय लिया!
तेरा हजार छेत्राप्णियों ने गोमुख में स्नान करके मुख में तुलसी लेकर पूजा पाठ के बाद पूजा पाठ के सामने बारूद के ढेर पर जोहार व्रत रूपी अग्नि स्नान किया!
जोहार व्रत की प्रचलित लपटों के प्रमुख राजपूतों ने केसरिया वस्त्र के वस्त्र धारण कर लिए!
पगड़ी में तुलसी टांग, गले में सालिगराम का गुटका टांग , कसुम्बा पान कर किले का दरवाजा खोलकर दुश्मन पर टूट पड़े !
और अपने खून का आखरी कतरा बहने तक युद्ध करते रहे ,इस तरह चित्तौड़ का दूसरा जोहार शाखा संपन्न हुआ!
Conclusion उपसंहार
कहा जाता है इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ था कि कि बरसात के नाले की तरह रक्त बहा रहा था किले से बाहर की ओर बह रहा था!
इस तरह रानी कर्मावती ने अपने अयोग्य पुत्र के शासन और चित्तौड़ बनवीर जैसे षड्यंत्र कार्यों के बीच रहकर भी उसने अपनी सूझबूझ रणनीति और बहादुरी की वजह से उसने घोर युद्ध किया!
अपने Love story स्वाभिमान के लिए स्वतंत्रता की रक्षा के लिए युद्ध करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी!
ज्ञात हो इसी रानी के शिशु राजकुमार उदय सिंह के प्राण बचाने हेतु अपने पुत्र का बलिदान दे दिया!
कहा जाता है कि राजपूत बहुत बहादुर थे और निडर थे वह उनके वचन बध थे !
वचन के पालन करते थे और बहुत ही बहादुर और निडर माना जाता है!
युद्धों में उनकी बहुत बहादुरी सुनने को मिलती है और इतिहास में वीरांगना इतिहास रचे हैं!