Krishna story कृष्णा स्टोरी
हेल्लो दोस्तों आज मैं आपको प्रसिद्ध krishna story के बारे में बताऊंगा!
भारत के सात प्राचीन और पवित्र नगरी में से एक है मथुरा! मथुरा में कृष्ण का जन्म हुआ था!
किसी ने कृष्ण के मामा कंस को बताया कि वासुदेव और देवकी का संतान ही उसकी मृत्यु का कारण होगी!
अतः वासुदेव और देवकी दोनों को जेल में बंद कर दिया कंस उक्त दोनों के संतान उत्पन्न होते ही मार डालता था!
भविष्यवाणी के अनुसार विष्णु को देवकी के गर्भ से कृष्ण के रूप में जन्म लेना था!
तो उन्होंने अपने आठवें अवतार के रूप में आठवीं मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28 वें द्वापर में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि में..
सात मुहूर्त निकल गए और आठवां उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न उपस्थित हुआ!
उस लग्न पर सिर्फ शुभ ग्रहों की दृष्टि थी रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी सहयोग से जयंती नामक योग से लगभग 3112 ईसा पूर्व( अर्थात आज से 5126 वर्ष पूर्व) को हुआ था!
ज्योतिषियों के अनुसार रात 12:00 बजे उस वक्त शून्य काल था!
Little krishna यमुना के पार गोकुल bhagvan krishn
जब कृष्ण का जन्म हुआ तो जेल के सभी संतरी माया द्वारा गहरी नींद में सो गए।
जेल के दरवाजे स्वत: ही खुल गए। उस वक्त भारी बारिश हो रही थी।
यमुना में उफान था। उस बारिश में ही वसुदेव ने नन्हे कृष्ण को एक टोकरी में रखा और उस टोकरी को लेकर वे जेल से बाहर निकल आए।
कुछ दूरी पर ही यमुना नदी थी। उन्हें उस पार जाना था लेकिन कैसे? तभी चमत्कार हुआ।
यमुना के जल ने भगवान के चरण छुए और फिर उसका जल दो हिस्सों में बंट गया और इस पार से उस पार रास्ता बन गया।
कहते हैं कि वसुदेव कृष्ण को यमुना के उस पार गोकुल में अपने मित्र नंदगोप के यहां ले गए।
Krishna story वहां पर नंद की पत्नी यशोदा को भी एक कन्या उत्पन्न हुई थी।
वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए।
गोकुल मां यशोदा का मायका था और नंदगांव में उनका ससुराल।
श्रीकृष्ण का लालन-पालन यशोदा व नंद ने किया।
गोकुल यमुना के तट पर बसा एक गांव है, जहां सभी नंदों की गायों का निवास स्थान था।
नंद मथुरा के आसपास गोकुल और नंदगांव में रहने वाले आभीर गोपों के मुखिया थे।
यहीं पर वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी ने बलराम को जन्म दिया था।
बलराम देवकी के 7वें गर्भ में थे जिन्हें krishna story में योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ में डाल दिया था।
यह स्थान गोप लोगों का था। मथुरा से गोकुल की दूरी महज 12 किलोमीटर है।
Krishna leela कृष्ण लीला krishna stories
जब कंस को पता चला कि छलपूर्वक वसुदेव और देवकी ने अपने पुत्र को कहीं ओर भेज दिया है.. तो,
उसने चारों दिशाओं में अपने अनुचरों को भेज दिया और कह दिया कि..
Krishna story "अमुक-अमुक समय पर जितने भी बालकों का जन्म हुआ हो उनका वध कर दिया जाए।
पहली बार में ही कंस के अनुचरों को पता चल गया कि हो न हो वह बालक यमुना के उस पार ही छोड़ा गया है।
बाल्यकाल में ही krishna leela "श्रीकृष्ण ने अपने मामा के द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला...
और उसके सभी कुप्रयासों को विफल कर दिया।
सबसे पहले उन्होंने पूतना को मारा। पूतना को उन्होंने नंदबाबा के घर से कुछ दूरी पर ही मारा।
नंदगांव में कंस का आतंक बढ़ने लगा तो नंदबाबा ने वहां से पलायन कर दिया।
पलायन करने के और भी कई कारण रहे होंगे।
नंदगांव में कंस के खतरे के चलते ही नंदबाबा दोनों भाइयों को वहां से दूसरे गांव वृंदावन लेकर चले गए।
Krishna story वृंदावन आगमन krishna ki story
वृंदावन कृष्ण की लीलाओं का प्रमुख स्थान है। वृंदावन मथुरा से 14 किलोमीटर दूर है।
श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण के अनुसार कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और
सजातियों के साथ नंदगांव से वृंदावन में आकर बस गए थे।
विष्णु पुराण में वृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है। krishna story में "यहां श्रीकृष्ण ने कालिया का दमन किया था।
फिर कुछ बड़ा होकर उन्होंने कदंब वन में बलराम के साथ मिलकर कालिया नाग का वध किया।
फिर इसी प्रकार वहीं ताल वन में दैत्य जाति का धनुक नाम का अत्याचारी व्यक्ति रहता था जिसका बलदेव ने वध कर डाला।
उक्त दोनों घटनाओं से कृष्ण और बलदेव की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी।
इसके अलावा यहां पर उन्होंने यमलार्जुन, शकटासुर वध, प्रलंब वध और अरिष्ट वध किया।
Radha krishna राधा कृष्णा का मिलन
मान्यता है कि यहीं पर श्रीकृष्ण और राधा एक घाट पर युगल स्नान करते थे।
इससे पहले कृष्ण की राधा से मुलाकात गोकुल के पास संकेत तीर्थ पर हुई थी।
वृंदावन में ही श्रीकृष्ण और गोपियां आंख-मिचौनी का खेल खेलते थे।
बड़े होकर krishna story में कृष्ण ने अपनी बांसुरी के मधुर ध्वनि से अनेकों गोपियों का दिल जीता..
लेकिन सबसे अधिक यदि कोई उनकी बांसुरी से मोहित होता, तो वह थी 💃 राधा!
परंतु राधा से कहीं अधिक स्वयं कृष्ण राधा के दीवाने थे! राधा कृष्ण
यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला अर्थात तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव का आयोजन करते थे।
कृष्ण की शरारतों के कारण उन्हें बांकेबिहारी कहा जाता है।
यहां बांकेबिहारीजी का मंदिर है। यहां पर यमुना घाट के प्रत्येक घाट से भगवान कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है।
Shri krishna leela में श्री कृष्ण के राक्षसों का संघार
वृंदावन के पास ही गोवर्धन पर्वत है। यहीं पर कृष्ण ने लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था।
उस काल में लोग इंद्र से डरकर उसकी पूजा करते थे। कृष्ण ने उनके इस डर को बाहर निकाला और..
सिर्फ परमेश्वर के प्रति ही प्रार्थना करने की शिक्षा दी।
नंद इन्द्र की पूजा का उत्सव मनाया करते थे। krishna story "श्रीकृष्ण ने इसे बंद करके कार्तिक मास में अन्नकूट का उत्सव आंरभ कराया।
वृंदावन में कालिया और धनुक का सामना करने के कारण दोनों भाइयों की ख्याति के चलते कंस समझ गया था कि...
ज्योतिष भविष्यवाणी अनुसार इतने बलशाली किशोर तो वसुदेव और देवकी के पुत्र ही हो सकते हैं।
तब कंस ने दोनों भाइयों को पहलवानी के लिए निमंत्रण दिया, क्योंकि कंस चाहता था कि..
इन्हें पहलवानों के हाथों मरवा दिया जाए, लेकिन दोनों भाइयों ने पहलवानों के शिरोमणि चाणूर और..
Shri krishna leela "मुष्टिक को मारकर कंस को पकड़ लिया और सबके देखते-देखते ही उसको भी मार दिया।
कंस का वध करने के पश्चात कृष्ण और बलदेव ने कंस के पिता उग्रसेन को पुन: राजा बना दिया।
उग्रसेन के 9 पुत्र थे, उनमें कंस ज्येष्ठ था। उनके नाम हैं- न्यग्रोध, सुनामा, कंक, शंकु अजभू, राष्ट्रपाल, युद्धमुष्टि और सुमुष्टिद।
Krishna stories 'उनके कंसा, कंसवती, सतन्तू, राष्ट्रपाली और कंका नाम की 5 बहनें थीं।
अपनी संतानों सहित उग्रसेनकुकुर-वंश में उत्पन्न हुए कहे जाते हैं और उन्होंने व्रजनाभ के शासन संभालने के पूर्व तक राज किया।
कृष्ण बचपन में ही कई आकस्मिक दुर्घटनाओं का सामना करने तथा किशोरावस्था में कंस के षड्यंत्रों को विफल करने के कारण बहुत लोकप्रिय हो गए थे।
कंस के वध के बाद उनका अज्ञातवास भी समाप्त हुआ और उनके सहित राज्य का भय भी।
Krishna sudama का मिलन
फिर तब उनके पिता और पालक ने दोनों भाइयों की शिक्षा और दीक्षा का इंतजाम किया।
दोनों भाइयों को अस्त्र, शस्त्र और शास्त्री की शिक्षा के लिए सांदीपनि के आश्रम भेजा गया,
जहां पहुंचकर krishna story "कृष्ण-बलराम ने विधिवत दीक्षा ली और अन्य शास्त्रों के साथ धनुर्विद्या में विशेष दक्षता प्राप्त की।
वहीं उनकी krishna sudama ब्राह्मण से भेंट हुई, जो उनका गुरु-भाई हुआ।
इस आश्रम में कृष्ण ने अपने जीवन के कुछ वर्ष बिताकर कई सारी घटनाओं से सामना किया और यहां भी उनको प्रसिद्धि मिली।
शिक्षा और दीक्षा हासिल करने के बाद कृष्ण और बलराम पुन: मथुरा लौट आए और..
फिर वे मथुरा के सेना और शासन का कार्य देखने लगे।
Krishna story श्री कृष्णा के कुछ पल
उग्रसेन जो मथुरा के राजा थे, वे कृष्ण के नाना थे।
कंस के मारे जाने के बाद उसका श्वसुर और मगध का सम्राट जरासंध क्रुद्ध हो चला था।
जब कंस का वध हो गया तो मगध का सबसे शक्तिशाली सम्राट जरासंध क्रोधित हो उठा, क्योंकि कंस उसका दामाद था।
जरासंघ कंस का श्वसुर था। कंस की पत्नी मगध नरेश जरासंघ को बार-बार इस बात के लिए उकसाती थी कि कंस का बदला लेना है। krishna lila.
इस कारण जरासंघ ने मथुरा के राज्य को हड़पने के लिए 17 बार आक्रमण किए।
Krishna stories में हर बार उसके आक्रमण को असफल कर दिया जाता था।
फिर एक दिन उसने कालयवन के साथ मिलकर भयंकर आक्रमण की योजना बनाई।
कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया। उसने मथुरा नरेश के नाम संदेश भेजा और..
कालयवन को युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया।
श्रीकृष्ण ने उत्तर में भेजा कि युद्ध केवल कृष्ण और कालयवन में हो, सेना को व्यर्थ क्यूं लड़ाएं?
कालयवन ने स्वीकार कर लिया।
कृष्ण और कालयवन का युद्ध हुआ और shri krishna कृष्ण रणभूमि छोड़कर भागने लगे, तो कालयवन भी उनके पीछे भागा।
भागते-भागते कृष्ण एक गुफा में चले गए। कालयवन भी वहीं घुस गया।
गुफा में कालयवन ने एक दूसरे मनुष्य को सोते हुए देखा।
कालयवन ने उसे कृष्ण समझकर कसकर लात मार दी और वह मनुष्य उठ पड़ा।
उसने जैसे ही आंखें खोलीं और इधर-उधर देखने लगा, तब सामने उसे कालयवन दिखाई दिया।
Krishna story में कालयवन उसके देखने से तत्काल ही जलकर भस्म हो गया।
Krishna कृष्णा Lord krishna लार्ड कृष्णा
कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले। वे इक्ष्वाकु वंशी महाराजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुन्द थे, जो तपस्वी और प्रतापी थे।
उनके देखते ही कालयवन भस्म हो गया। मुचुकुन्द को वरदान था कि..
जो भी उन्हें उठाएगा वह उनके देखते ही भस्म हो जाएगा।
कालयवन के मारे जाने के बाद हड़कंप मच गया था। अब विदेशी भी श्रीकृष्ण के शत्रु हो चले थे।
तब अंतत: krishna story में कृष्ण ने अपने 18 कुल के सजातियों को मथुरा छोड़ देने पर राजी कर लिया।
वे सब मथुरा छोड़कर रैवत पर्वत के समीप कुशस्थली पुरी (द्वारिका) में जाकर बस गए। -(महाभारत मौसल- 14.43-50)
यह इतिहास का सबसे बड़ा माइग्रेशन था। उग्रसेन, अक्रूर, बलराम सहित लाखों की तादाद में कृष्ण के कुल के यादव अपने पूर्व स्थान द्वारका लौट गए।
रह गए तो सिर्फ वे जो कृष्ण कुल से नहीं थे।
लाखों की संख्या में मथुरा मंडल के लोगों ने उनको रोकने का प्रयास किया जिनमें दूसरे यदुवंशी भी थे।
सभी की आंखों में आंसू थे, लेकिन krishna कृष्ण को तो जाना ही था। सौराष्ट्र में पहले से ही यदुवंशी लोग रहते थे।
यह उनके प्राचीन पूर्वजों की भूमि थी। इस निष्क्रमण के उपरांत मथुरा की आबादी बहुत कम रह गई होगी।
कृष्ण के जाने के बाद मथुरा पर जरासंध का शासन हो गया।
द्वारिका में रहकर कृष्ण ने सुखपूर्वक जीवन बिताया।
यहीं रहकर उन्होंने हस्तिनापुर की राजनीति में अपनी गतिविधियां बढ़ाईं और..
Krishna story में कृष्ण ने 8 स्त्रियों से विवाह कर एक नए कुल और साम्राज्य की स्थापना की।
द्वारिका वैकुंठ के समान थी। कृष्ण की 8 पत्नियां थीं:- रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, मित्रवन्दा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।
इनसे उनका कई पुत्र और पुत्रियों की प्राप्ति हुई।
Shri krishna की कुछ बातें krishna stories
इसके बाद कृष्ण ने भौमासुर (नरकासुर) द्वारा बंधक बनाई गई लगभग 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराकर उन्हें द्वारिका में शरण दी।
Krishna story में नरकासुर प्रागज्योतिषपुर का दैत्यराज था जिसने इंद्र को हराकर उनको उनकी नगरी से बाहर निकाल दिया था।
नरकासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे थे।
वह वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल और देवताओं की मणि छीनकर त्रिलोक विजयी हो गया था।
वह पृथ्वी की हजारों सुन्दर कन्याओं का अपहरण कर उनको बंदी बनाकर उनका शोषण करता था।
मुक्त कराई गई ये सभी स्त्रियां श्री कृष्ण की पत्नियां या रखैल नहीं थीं बल्कि उनकी सखियां और शिष्या थीं,
जो उनके राज्य में सुखपूर्वक स्वतंत्रतापूर्वक अपना अपना जीवन-यापन अपने तरीके से कर रही थीं।
Krishna story में "पांडवों से कृष्ण की मुलाकात : - एक दिन पंचाल के राजा द्रुपद द्वारा द्रौपदी-स्वयंवर का आयोजन किया गया।
उस काल में पांडव के वनवास के 2 साल में से अज्ञातवास का एक साल बीत चुका था।
कृष्ण भी उस स्वयंवर में गए। वहां उनकी बुआ (कुंती) के लड़के पांडव भी मौजूद थे।
यहीं से पांडवों के साथ कृष्ण की घनिष्ठता का आरंभ हुआ।
Hare Krishna हरि कृष्ण और अर्जुन पांडवों की घनिष्ठता
पांडव अर्जुन ने मत्स्य भेदकर द्रौपदी को प्राप्त कर लिया और..
इस प्रकार अपनी धनुर्विद्या का कौशल अनेक देश के राजाओं के समक्ष प्रकट कर दिया।
Krishna story "अर्जुन की इस कौशलता से श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए।
वहीं उन्होंने पांडवों से मित्रता बढ़ाई और वनवास की समाप्ति के बाद वे पांडवों के साथ हस्तिनापुर पहुंचे।
कुरुराज धृतराष्ट्र ने पांडवों को इंद्रप्रस्थ के आस-पास का प्रदेश दे रखा था।
पांडवों ने Lord krishna के द्वारका निर्माण संबंधी अनुभव का लाभ उठाया।
उनकी सहायता से उन्होंने भी जंगल के एक भाग को साफ कराकर इंद्रप्रस्थ नगर को अच्छे और सुंदर ढंग से बसाया।
इसके बाद कृष्ण द्वारका लौट गए। फिर एक दिन अर्जुन तीर्थाटन के दौरान द्वारिका पहुंच गए।
वहां कृष्ण की बहन सुभद्रा को देखकर वे मोहित हो गए।
कृष्ण ने दोनों का विवाह करा दिया और इस तरह कृष्ण की अर्जुन से प्रगाढ़ मित्रता हो गई।
इंद्रप्रस्थ के निर्माण के बाद युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया और आवश्यक परामर्श के लिए कृष्ण को बुलाया।
कृष्ण इंद्रप्रस्थ आए और उन्होंने राजसूय यज्ञ के आयोजन का समर्थन किया।
Krishna story "लेकिन उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि पहले अत्याचारी राजाओं और उनकी सत्ता को नष्ट किया जाए..
तभी राजसूय यज्ञ का महत्व रहेगा और देश-विदेश में प्रसिद्धि होगी।
युधिष्ठिर ने कृष्ण के इस सुझाव को स्वीकार कर लिया,
तब कृष्ण ने युधिष्ठिर को सबसे पहले जरासंध पर चढ़ाई करने की सलाह दी।
इसके बाद भीम और अर्जुन के साथ कृष्ण मगध रवाना हुए और कुछ समय बाद मगध की राजधानी गिरिब्रज पहुंच गए।
कृष्ण की नीति सफल हुई और उन्होंने भीम द्वारा मल्लयुद्ध में जरासंध का वध करवा डाला।
हरे कृष्ण bhagvan krishn और पांडवों की कुछ रिश्ते
जरासंध की मृत्यु के बाद कृष्ण ने उसके पुत्र सहदेव को मगध का राजा बनाया।
फिर उन्होंने गिरिब्रज के बंदीगृह में बंद सभी राजाओं को मुक्त किया और..
Krishna story में, इस प्रकार कृष्ण ने जरासंध जैसे क्रूर शासक का अंत कर बंदी राजाओं को उनका राज्य पुन: लौटाकर खूब यश पाया।
जरासंध के वध के बाद अन्य सभी क्रूर शासक भयभीत हो चले थे।
पांडवों ने सभी को झुकने पर विवश कर दिया और इस तरह इंद्रप्रस्थ का राज्य विस्तार हुआ। krishna lila.
इसके बाद युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ में युधिष्ठिर ने भगवान वेद व्यास, भारद्वाज, सुनत्तु, गौतम, असित, वशिष्ठ, च्यवन, कण्डव, मैत्रेय, कवष, जित, विश्वामित्र, वामदेव, सुमति, जैमिन, क्रतु, पैल, पाराशर, गर्ग, वैशम्पायन, अथर्वा, कश्यप, धौम्य, परशुराम, शुक्राचार्य, आसुरि, वीतहोत्र, मधुद्वंदा, वीरसेन, अकृतब्रण आदि सभी को आमंत्रित किया।
Krishna stories इसके अलावा सभी देशों के राजाधिराज को भी बुलाया गया।
इसी यज्ञ में कृष्ण का शत्रु और जरासंध का मित्र शिशुपाल भी आया हुआ था, जो कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के भाई का मित्र था और..
जो रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था।
यह कृष्ण की दूसरी बुआ का पुत्र था इस नाते यह कृष्ण का भाई भी था।
अपनी बुआ को श्रीकृष्ण ने उसके 100 अपराधों को क्षमा करने का वचन दिया था।
इसी यज्ञ में कृष्ण का उसने 100वीं बार अपमान किया जिसके चलते भरी यज्ञ सभा में कृष्ण ने उसका वध कर दिया।
भगवान कृष्ण lord Krishna उपसंहार
द्वारिका में रहकर कृष्ण ने धर्म, राजनीति, नीति आदि के कई पाठ पढ़ाए और धर्म-कर्म का प्रचार किया,
लेकिन वे krishna story में "कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध को नहीं रोक पाए और अंतत: महाभारत में वे अर्जुन के सारथी बने।
उनके जीवन की ये सबसे बड़ी घटना थी। कृष्ण की महाभारत में भी बहुत बड़ी भूमिका थी।
कृष्ण की बहन सुभद्रा अर्जुन की पत्नी थीं। श्रीकृष्ण ने ही युद्ध से पहले अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
महाभारत युद्ध को पांडवों के पक्ष में करने के लिए कृष्ण को युद्ध के पूर्व कई तरह के छल, बल और नीति का उपयोग करना पड़ा।
अंतत: उनकी नीति के चलते ही पांडवों ने युद्ध जीत लिया।
इस युद्ध में भारी संख्या में लोग मारे गए।
सभी कौरवों की लाश पर विलाप करते हुए गांधारी ने श्राप दिया कि- हे कृष्ण, तुम्हारे कुल का नाश हो जाए।
इसके पश्चात कृष्ण के यदुवंशी का नाश हो जाता है और कृष्ण की मृत्यु एक शिकारी के हाथों होता है!
Krishna story में शिकारी कृष्ण के पैर को हिरण का मुख समझ कर तीर से मारता है इस प्रकार कृष्ण की मृत्यु हो जाती है!